भावना तिवारी -भावांकन
गीत नवगीत कविता डायरी
10 May, 2018
नवगीत -कर्ज़ से हारा रघुआ
दंश झेलता बदहाली का
हुआ राम को प्यारा रघुआ।
पारसाल के वचन भरोसे
सोचा
कष्ट कटेंगे।
रह-रह जो आँखों में उमड़े
दुख के मेघ छँटेंगे।
अंध नगर में,
अंधे पीसें
चौपट राजा
झूठे वादे
शोषित लिपट नीम से रोया
और कर्ज़ से हारा रघुआ।
पास नहीं
फूटी कौड़ी भी
जिससे मुँह भर देता,
'लोन पास' यदि हो जाता तो
गुनिया को वर देता।
ज्ञान बताता रहा 'कलेक्टर'
फिर भी खाली रहा 'कनस्तर'
राजतंत्र से पाया धोखा
शेष रहा हड्डी का खोखा
ख़बर उड़ी हरपीर उठी है
गया मर्ज़ का मारा रघुआ।
10 June, 2017
कवयित्री विशेषांक हेतु रचनाएँ आमंत्रित
*कवयित्री विशेषांक* के लिए रचनाएँ आमंत्रित
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काव्य-केंद्रित त्रैमासिक पत्रिका "अनन्तिम"
का आगामी अंक (जुलाई-सितम्बर 2017) काव्य-की किसी भी विधा में अपनी तीन-तीन रचनाएँ प्रेषित करें। लघु विधाओं में यथा दोहा, हाइकु तथा क्षणिकाएँ आदि 10 की संख्या में भेजें। साथ में संक्षिप्त परिचय, छाया-चित्र तथा मौलिकता प्रमाण पत्र अवश्य भेजें| (अंतिम तिथि- 25 जून) रजिस्टर्ड डाक या कुरियर से इस पते पर भेजें-
डॉ.भावना तिवारी (अतिथि संपादक)
C-224, सेक्टर-19 नोएडा-201301
मो- 9935318378
ईमेल के माध्यम से इस पते पर भेजें- drbhavanatiwari@gmail.com
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डॉ.भावना तिवारी (अतिथि संपादक)
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10 January, 2016
07 January, 2016
बूँद-बूँद गंगाजल -डॉ.भावना तिवारी
�अब तक मेरे गीतों को आपने 'कवि-सम्मेलनों' में दिल से सुना, सराहा, और भरपूर प्यार दिया,
उसके लिए आपकी बहुत-बहुत आभारी हूँ । अब मेरा# गीत-संग्रह ..#"बूँद-बूँद गंगाजल"..#'
अंजुमन प्रकाशन' से प्रकाशित हो चुका है, जिसकी online pre-booking का
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आपका बहुमूल्य साहित्यिक सहयोग अपेक्षित है।।������
Amazon पर कैशऑन डिलीवरी की सुविधा भी उपलब्ध है ।।
#डॉ.भावना तिवारी /
drbhavanatiwari@gmail.com
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#डॉ.भावना तिवारी /
drbhavanatiwari@gmail.com
#बूँद -बूँद#गंगाजल# भावना#तिवारी
20 October, 2015
14 October, 2015
चलो बस यूँ ही
ये पद्मश्री
ये प्रशस्तियाँ
ये अकादमी
ये हस्तियाँ
ये बड़े-बड़े नाम
और उनके काम
नहीं जानती मैं
मैं मेरी बस्ती की
बस एक सखी को जानती हूँ
अभी कुछ दिन पहले ही तो
ईद की दी थीं उसने बधाईयाँ
मैंने खिलाईं थीं ख़ास मेवे वाली सिवइयाँ !!
सुनो महानुभावो
बड़ी चर्चा है आजकल तुम्हारी
सुना है बड़े फ़िक्रमंद हो तुम
पर सुनो ,कान खोलकर सुनो
दीवाली आने वाली है
ख़ुदा होने का दंभ भरने वालों
वातानुकूलित कक्षों में बैठकर
जनमानस का दर्द लिखने वालों
अपने भीतर भी इक़ दिया जलाना
मैं तुम्हें खिलाऊँगी मिठाइयाँ
भूल जाओगे फ़िर पुरस्कारों की रेवड़ियाँ
करूँगी जयगान तुम्हारा
फ़िर हृदयों पर लिखे जाएँगे
तुम्हारे यश -अभिलेख
जिन्हें तुम चाहकर भी
लौटाने की हिमाक़त न कर सकोगे !!
भावना तिवारी
ये प्रशस्तियाँ
ये अकादमी
ये हस्तियाँ
ये बड़े-बड़े नाम
और उनके काम
नहीं जानती मैं
मैं मेरी बस्ती की
बस एक सखी को जानती हूँ
अभी कुछ दिन पहले ही तो
ईद की दी थीं उसने बधाईयाँ
मैंने खिलाईं थीं ख़ास मेवे वाली सिवइयाँ !!
सुनो महानुभावो
बड़ी चर्चा है आजकल तुम्हारी
सुना है बड़े फ़िक्रमंद हो तुम
पर सुनो ,कान खोलकर सुनो
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ख़ुदा होने का दंभ भरने वालों
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अपने भीतर भी इक़ दिया जलाना
मैं तुम्हें खिलाऊँगी मिठाइयाँ
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भावना तिवारी
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