गीत नवगीत कविता डायरी

13 February, 2013

प्रेम

छौंक देती हूँ ...

ख़ुदी को !

चमचे में खौलता तेल,

जैसे उबाल मारता ख़ून !

चटखता हुआ जीरा,

ज्यूँ टूटते हुए ख़्वाब.!

रोज़ परोस देती हूँ 

अपना वज़ूद,

वक़्त की थाली में !

ढूँढती हूँ प्रेम,

तुम्हारी गाली में !! 

2 comments:

  1. आपकी पोस्ट 14 - 02- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें ।

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  2. गज़ब की रचना है ये...बहौत खूब !

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