गीत नवगीत कविता डायरी

14 January, 2013

गीत ..बेटियाँ


गंगा की जलधार सीं ,
अर्घ्य की पावनधार सीं ,
जीवन के आधार सीं .
भोर सजीली भक्ति रूप 
होतीं हैं बेटियाँ ..!!

सुभग अल्पना द्वार कीं,
सजतीं वंदनवार सीं/
महकें हरसिंगार सीं ,
जीवन भर की छाँह -धूप 
होतीं हैं बेटियाँ ..!!

बाबा के सत्कार सीं ,
मर्यादा परिवार कीं ,
बेमन हैं स्वीकार सीं ,
धीर धरे चुप गहन कूप 
होतीं हैं बेटियाँ ...!!!

13 January, 2013

बहुत हुशियारियाँ अच्छी नहीं होतीं मुहब्बत में,
किसी से दिल लगाना हो,तो भोलापन ज़रुरी है ....

कठिन समय में योग्य-मनुज 
हर दुख,बिसार गाते हैं !
एकलव्य से शिष्य गुरु का 
ऋण,उतार जाते हैं   !!
अटल साधना ध्रुव जैसी 
नभ तक ,प्रसार पाती है ,
अथक लगन के सम्मुख पथ के,
शूल हार जाते हैं ..!!

शब्दों से परे...भावना ..

                                                 

                                                            

                                       

12 January, 2013

निर्णायक रणभेरी गूँजे .....!!

छोड़ो प्रेम प्यार की बातें ,
रार और मनुहार की रातें !
हैं शमशीर उठाने के दिन ,
कठिनाई से लड़ने के दिन !
सीमाओं पर रक्त बहे जब ,
मेहंदी नहीं रचाई जाती !!
शैतानों से युद्ध छिड़े जब 
लोरी नहीं सुनाई जाती !!
श्वेत पोश सर्पों को कुचलें
सरकारी मंसूबे मसलें ...!
जिसे नहीं है प्रेम देश से 
चुल्लू भर पानी में डूबे !!
स्वाभिमान की खातिर जागा 
हिन्दुस्तान की ख़ातिर जागा !
अब जन गण यह मांग रहा है ,
निर्णायक रणभेरी गूँजे .....!!

.....

सहज 

स्वीकार्यता 

समझी गई 

कायरता !!

मानसिक व्यभिचार ,

देह पर छोड़े निशान 

प्रेम का प्रतिदान ,

बर्बरता !!

चंद कविताएँ

  मौन
देह की टूटन,
मन की थकान
इच्छाओं की
ऊँची इमारतें..!
रीढ़ की हड्डी
तोड़ देतीं हैं,
दिल का दिमाग़ से
रिश्ता तोड़ देतीं हैं ..!
इतना झुका देतीं
इतना रुला देतीं हैं
कि नींव की नमीं
नहीं जाती ..
दरारों की पीर
कही नहीं जाती ..!
दर्द बता नहीं पातीं
चौखटों की बाहें ..!
और मौन पढ़ना
आसान नहीं होता ...!!

    सुहागन
मेरे प्रिय
सांस-सांस है नाम 
तुम्हारा लेती जाती !
बिन कागज़ के 
बिना कलम के,
मौन अधर पर 
पाती कोई लिखती जाती.!
दूर होकर भी पास 
प्रेम प्रबल विश्वास ..!!
खोज रही हैं फिर क्यों तुमको ..
खारी आँखें..!!
काट रही हूँ जाग-जाग 
संयासिनि रातें..!!
याद रहे बिन सेंदुर के ...
हो गई सुहागन ..
खुद पर ही इतराती जाती ....
नाम तुम्हारा लेती जातीं ..
पगली साँसें ..!!!
  
एहसास
मैं भीड़ से 
गुजर तो आई हूँ
कई बार लगा तुम हो ..
कई बार लगा कि नहीं मैं हूँ 
कई बार हुआ एहसास कि हम हैं 
साथ ..न तुम थेन मैं थी 
था ये महज आभास 
जैसे इक समुन्दर में डूब कर भी 
शेष हो प्यास 
बरस जाते जो कभी तुम 
इक बूँद बन..
होता उस भीड़ में भी कहीं 
तुम्हारी छुअन का एहसास 
तुम नहीं थे पास..
भीड़ से गुजर तो आई हूँ
खाली हाथ ... !!

   औरतें
हम औरतें ...!!
सूरज की पहली किरण से पहले,
छोड़ कर नींद का हाथ /
शोर के उठने से पहले,
थाम कर मौन का हाथ //
खटने लगतीं हैं ..
चूल्हा,चौका,बर्तन,बच्चों
और शौहर के बीच..//
चकरघिन्नी सी घूमती हैं
घडी की सुई के साथ-साथ /
इतना भी समय कहाँ कि 
सुन सकें अपनी धड़कन,
और साँसों की धुन ...
हम औरतें ..!!

मेरी माँ ..!!


अपने पल्लू में बाँध लीं तुमने,सारे घर की व्यथाएँ, मेरी माँ ,
चूल्हे चौके से घिरी,प्यार भरी,घर को घर सा बनाएँ, मेरी माँ // 

अंक में प्यार भरे ,
सोच को पंख दिए,
पूजे बरगद तुलसी ,
हाथ में शंख लिए /
अपनी चोटi में गूँथ लीं तुमने,मेरे सर की बलाएँ ,मेरी माँ //
अपने पल्लू में बाँध लीं तुमने,सारे घर की व्यथाएँ, मेरी माँ ,

तेरे वरदान फले ,
मुझको सम्मान मिले /
चार धामों के सभी,
पुण्य चरणों में मिले /
मेरे जीवन में कड़ी धूप बढ़ी,अपना आशिष उढ़ाएँ,मेरी माँ //
अपने पल्लू में बाँध लीं तुमने,सारे घर की व्यथाएँ, मेरी माँ ,

भोर की पहली किरण,
प्रार्थनाओं का चलन /
सब दवाओं में दुआ
मंत्र पढ़ती है छुअन /
दर्द को दूर उड़ा ले के गईं/ बनके ठण्डी हवाएँ मेरी माँ //
अपने पल्लू में बाँध लीं तुमने,सारे घर की व्यथाएँ, मेरी माँ ,

माँ....!!



सौंधी मिट्टी की ख़ुशबू सी
मेरी साँसों में मेरी माँ,
मेरी धड़कन में मेरी माँ ,
मेरी खुशियों का कारण माँ....!!

गीत





मोम ह्रदय जलने को आतुर,
प्राण तडपती पीड़ा बाँटें..
किसे समय अंतस में झांके !

शहर भागता दौड़ा जाये
ना पकड़ा ना छोड़ा जाये !
पिंजरे की सांकल ना खुलती
द्वार न तम का तोडा जाये !

अंतहीन चिर मेरा चलना 
जीवन छोटा लम्बी राहें !!

आदि अंत का छोर न जानूं 
तू मुझमें बस इतना जानूं !
सात युगों से प्रण है मिटकर
एक बार प्रिय तुमको पालूँ !

सप्त-तलों की गहराई है
अधर सिन्धुतट पर भी प्यासे !!

किसे समय अंतस में झांके.... !


ज़मी सुखा दी ,फसल सुखा दी ,
नदी में प्यासीं मरीं ,मछलियाँ ! 
भरे समंदर पै जाके बरसे, 
जलद खुदाया क्या फायदा है ? 
जिए तो मिलने कभी दिया ना, 
मरे तो लाखों बने फसाने , 
गजब ज़माने के फलसफे हैं , 
अजब मुहब्बत का कायदा है..!!

गीत ..

आज फिर बरसे हैं बादल जोर से ,
मन बहकने सा लगा है ..!!

 धुल गए पत्ते सभी/
 लग रहे सब ही नए ,
छू गई हौले से फिर,खुशबू कोई, 
मन महकने सा लगा है ...!! 

 इक घटा है घोर काली 
लड़ रही है पास वाली ,
प्रीत की,लगतीं पुजारन बिजलियाँ, 
मन दहकने सा लगा है ..!!

 सांवली सी हो गई हूँ 
और चंचल हो गई हूँ , 
गा रही हूँ, गीत तेरी याद मैं ,
मन तड़पने सा लगा है ..!!
आज फिर बरसे हैं बादल जोर से..!!!