गीत नवगीत कविता डायरी
14 February, 2013
प्रेम-संबंध..
वो दिन कुछ और थे,
जब इक़ निगाह की
हल्की सी छुअन
भर जाती थी ज़िस्म का
रेशा-रेशा,पोर-पोर ख़ुश्बू से...
यादों का पुलिंदा
समेटते-समेटते
भर आतीं थीं,अनायास ही
मुस्कुराते हुए होठों के साथ आँखें।..
जिनमें अभी तक
प्यार की क़सक ज़िंदा है !!.
आज इश्तेहार सा चेहरा,
मासूमियत ढूँढता है
टैडी बिअर में...
विदेशी नस्ल के गुलाबों में,
पाना चाहे मन
मिट्टी की सौंधी महक...
मिठास का एहसास...
चाहता है चौकलेट के टुकड़े में..
उफ़,शो रूम के डिस्प्ले में रखे..
शो पीस सा प्रेम-संबंध..
सोचती हूँ कितना मँहगा
हो गया है प्रणय अनुबंध !!
~भावना
-सार्थकता-
सुनो,एक कप चाय देने से शुरू
हर सुबह घर सँवारने में लगाई,
कभी मुन्ना को संभाला
कभी मुन्नी की चुटिया बनाई!
बांधा परिवार अपने पल्लू में
दिनभर जिमेदारी निभाई,
थकी हुई रात की चारपाई,
निढाल हो,
कटे पेड़ सा गिरना.
सारी उम्र का खटना...
कभी प्रणय दिवस मनाने की
सुधि ही नहीं आई ....!!
पर सुनो..
कितना सुकून है
कि अपना अनकहा प्रेम भी,
कितना सार्थक था..
कि घर के पंछी छू रहे हैं
आकाश की ऊँचाई ...!!!
~भावना
13 February, 2013
प्रेम
छौंक देती हूँ ...
ख़ुदी को !
चमचे में खौलता तेल,
जैसे उबाल मारता ख़ून !
चटखता हुआ जीरा,
ज्यूँ टूटते हुए ख़्वाब.!
रोज़ परोस देती हूँ
अपना वज़ूद,
वक़्त की थाली में !
ढूँढती हूँ प्रेम,
तुम्हारी गाली में !!
12 February, 2013
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