गीत नवगीत कविता डायरी

15 June, 2011

गीत

उनके दिल के दरवाजे अब
मेरी खातिर नहीं खुलेंगे/
मेरे बहुत चाहने पर भी,
हँसकरके वो नहीं मिलेंगे//

हंसी खेल की बात ज़रा सी,
रूप विकट लेगी झगड़े का/
हल न सवालों का निकलेगा,
मुश्किल में,सम्बन्ध पड़ेगा/
बहुत चाहने पर भी आँसू,
इन हांथों से नहीं पुछेंगे//

एक भूल का इतना सारा,
दंड मिलेगा कब सोचा था?
सागर-नदिया साथ चलेंगे,
लेकिन उनका मेल न होगा/
बहुत चाहने पर भी नगमे
इन होठों की नहीं सुनेंगे/


सोच बहुत ऊंची है ..
पंख अभी नाजुक हैं..
आसमान बहुत ऊंचा .
सोचना है कि कैसे छूना है
उड़ान अभी बहुत लम्बी है !!
शब्द पुराने हैं ...बात पुरानी है ..पल पल गुज़रा कैसे ..यह एक कहानी है .!!