पावस के सब दिन कल-कल कर बीत गए //
पल-पल उँगली के पोरों पर रीत गए /
पल-पल उँगली के पोरों पर रीत गए /
साँझ हुई फ़िर जला लिया ,दीपक उर में ,
ड्योढ़ी पर बैठी न लगे मन अब घर में /
साँसों की लौ रह-रह ,सहसा तेज़ हुई ,
आँखों की चौखट पावस की सेज हुई /
ताकूँ पंथ न जाने किस पथ मीत गए //
पावस के सब दिन कल-कल कर बीत गए //
यादों की बौछारों पर ,मन रीझ गया ,
काजल वाले जल से आँचल भीज गया /
प्राणों पर निष्ठुर बिजली डोरे डाले ,
विचलित करते मन बरबस बादल काले /
मैं हारी ये सारे विषधर जीत गए //
पावस के सब दिन कल-कल कर बीत गए //
पथराये मन पर छाई दुख की काई ,
धीरज के पाँवों में फिर फिसलन आई /
पलकों की चादर पर दृग आँसू टाँकें ,
उर की दीवारें मिलकर सिसकन बाँटें /
स्वर लहरी में तड़पन भर-भर गीत गए /
पावस के सब दिन कल-कल कर बीत गए //