गीत नवगीत कविता डायरी

14 February, 2013



        -सार्थकता-
सुनो,एक कप चाय देने से शुरू
हर सुबह घर सँवारने में लगाई,
कभी मुन्ना को संभाला
कभी मुन्नी की चुटिया बनाई!
बांधा परिवार अपने पल्लू में
दिनभर जिमेदारी निभाई,
थकी हुई रात की चारपाई,
निढाल हो,
कटे पेड़ सा गिरना.
सारी उम्र का खटना...
कभी प्रणय दिवस मनाने की 
सुधि ही नहीं आई ....!!
पर सुनो..
कितना सुकून है 
कि अपना अनकहा प्रेम भी,
कितना सार्थक था..
कि घर के पंछी छू रहे हैं 
आकाश की ऊँचाई ...!!!
  ~भावना 

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