गीत नवगीत कविता डायरी

10 June, 2010

जीवन छोटा लम्बी राहें

मोम हृदय, जलने  को आतुर,
प्राण तडपती पीड़ा बाँटें
समय किसे अंतस में झांके !!
शहर भागता- दौड़ा जाये ,
क्या पकड़ा, क्या छोड़ा जाये !
पिंजरे की सांकल ना खुलती
द्वार न तम का तोडा जाये !
अंतहीन चिर मेरा चलना,
जीवन छोटा लम्बी राहें !!
आदि अंत का छोर न जानूँ ,
तू मुझमें ,बस इतना मानूँ !
सात युगों से प्रण है मिटकर ,
एक बार प्रिय तुमको पालूँ !
सप्त-तलों की गहराई है ,
अधर सिन्धु-तट पर भी प्यासे !!


मुक्तक

दर्द सहती रही जाने किसके लिए ,
आँख रोती रही जाने किसके लिए !
इस जमाने को मेरी जरूरत नहीं ;
सांस चलती रही जाने किसके लिए !!
               ~भावना~