प्रेम-संबंध..
वो दिन कुछ और थे,
जब इक़ निगाह की
हल्की सी छुअन
भर जाती थी ज़िस्म का
रेशा-रेशा,पोर-पोर ख़ुश्बू से...
यादों का पुलिंदा
समेटते-समेटते
भर आतीं थीं,अनायास ही
मुस्कुराते हुए होठों के साथ आँखें।..
जिनमें अभी तक
प्यार की क़सक ज़िंदा है !!.
आज इश्तेहार सा चेहरा,
मासूमियत ढूँढता है
टैडी बिअर में...
विदेशी नस्ल के गुलाबों में,
पाना चाहे मन
मिट्टी की सौंधी महक...
मिठास का एहसास...
चाहता है चौकलेट के टुकड़े में..
उफ़,शो रूम के डिस्प्ले में रखे..
शो पीस सा प्रेम-संबंध..
सोचती हूँ कितना मँहगा
हो गया है प्रणय अनुबंध !!
~भावना
No comments:
Post a Comment