गीत नवगीत कविता डायरी

08 May, 2015

कौन भला निर्दोष यहाँ


दो दिनों में ही सब राजा हरिश्चन्द्र के वशंज चीख़ –चीख़कर न्याय का घंटा बजा रहे हैं .....मीडिया ने भी..हद कर दी ....ऐसा शोर मचाया कि जैसे इसके अतिरिक्त न तो देश में कोई समस्या है ..न कोई अन्य दोषी ..न अपराधी....वे जो गुंडों को प्रश्रय देते है...उनको कोई खोज ख़बर है क्या भूकंप पीछे छूट गया...किसानों की आत्महत्याएँ पीछे छूट गईं ....मासूम बच्चियों को हैवानियत का शिकार बनाने वालों का हृदय परिवर्तन हो गया ....कोई अन्य ख़बर नहीं ....अरे कोई बताओ ..रामराज  आ गया क्या...और एक ही रावण है ...कुकर्मी ...उसको शूली पर चढ़ा देना चाहिए ...निरपराध कोई है क्या ....स्वयं में झाँकने का समय ही कहाँ हैं ...बाहर –बाहर की ही यात्रा इतनी लम्बी है कि अपने भीतर की छोटी सी यात्रा कौन करे....हम अपना काम सही से करें....न करें .....पर हम अन्य लोगों के कर्तव्य गिनाने से कभी नहीं चूकते ....हम इस कार्य में पूर्ण –रूपेण परिपक्व और दक्ष हैं ....इसमें कहीं कोई कमी नहीं ....पीछे पड़ जाएँ जिसके तो न्याय करवाकर, गंगा नहाकर ही दम लेते हैं !
एक बार ..केवल एक बार ..क्या विचार नहीं करना चाहिए कि -क्या हम अपराधी नहीं ....हम पापी नहीं ...हम सौ प्रतिशत सच्चे और खरे सोना हैं ..क्या हमने अपना दोष छिपाने हेतु कभी किसी अन्य पर दोषारोपण  नहीं किया....क्या हम सत्य के चरम पर हैं ...

यहाँ दोषी केवल वही है जिसका दोष प्रकट हो जाए...जो TRP का द्योतक बन जाए ..जिसपर कहानियाँ लिखी जा सकें...हम सब धर्मराज युधिष्ठिर हो गए हैं क्या !!

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