दंश झेलता बदहाली का
हुआ राम को प्यारा रघुआ।
पारसाल के वचन भरोसे
सोचा
कष्ट कटेंगे।
रह-रह जो आँखों में उमड़े
दुख के मेघ छँटेंगे।
अंध नगर में,
अंधे पीसें
चौपट राजा
झूठे वादे
शोषित लिपट नीम से रोया
और कर्ज़ से हारा रघुआ।
पास नहीं
फूटी कौड़ी भी
जिससे मुँह भर देता,
'लोन पास' यदि हो जाता तो
गुनिया को वर देता।
ज्ञान बताता रहा 'कलेक्टर'
फिर भी खाली रहा 'कनस्तर'
राजतंत्र से पाया धोखा
शेष रहा हड्डी का खोखा
ख़बर उड़ी हरपीर उठी है
गया मर्ज़ का मारा रघुआ।
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