हो गया संपन्न सम्मेलन
लोग बनकर रह गए दोलन
और परिभाषित न फिर से हो सकीं
व्याख्याएँ प्रेम कीं ..!!
निकटतम संबंध बोझीले हुए
जन्म के अनुबंध फ़िर ढीले हुए
सोच भर से शुष्क दृग गीले हुए !
और आच्छादित न फ़िर से हो सकीं
भावनाएँ प्रेम कीं ...!!
हो गए पूरे सभी भाषण
बस दिखावे को रहा हर प्रण
जानकी को छल गया रावण !
और वरदानित न फ़िर से हो सकीं
साधनाएँ प्रेम कीं ...!!
संकलन अपनों परायों का
ज़िंदगी है ग्रंथ साँसों का
संधि-विग्रह औ'समासों का !
और संपादित न फ़िर से हो सकीं
यातनाएँ प्रेम कीं ..!!
भाव को साकार कर पाए नहीं
बेड़ियाँ,प्रतिबंध,गल पाए नहीं
रीति का प्रतिकार कर पाए नहीं !
और स्वरसाधित न फ़िर से हो सकीं
शुभऋचाएँ प्रेम कीं ...!!
-- भावना
बहुत सुन्दर ढंग से परिभाषित किया है प्रेम को . आभार !
ReplyDeleteसच्चे प्रेम की व्याख्या संभव ही नहीं ... उसे महसूस करना होता है ...
ReplyDeleteबहुत सटीक लिखा है .बेहतरीन भाव हैं .आभार !
ReplyDeleteप्यार रामा में है प्यारा अल्लाह लगे ,प्यार के सूर तुलसी ने किस्से लिखे
प्यार बिन जीना दुनिया में बेकार है ,प्यार बिन सूना सारा ये संसार है
प्यार पाने को दुनिया में तरसे सभी, प्यार पाकर के हर्षित हुए है सभी
प्यार से मिट गए सारे शिकबे गले ,प्यारी बातों पर हमको ऐतबार है
बहुत सुंदर लिखा है्...
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