गीत नवगीत कविता डायरी

12 January, 2013

निर्णायक रणभेरी गूँजे .....!!

छोड़ो प्रेम प्यार की बातें ,
रार और मनुहार की रातें !
हैं शमशीर उठाने के दिन ,
कठिनाई से लड़ने के दिन !
सीमाओं पर रक्त बहे जब ,
मेहंदी नहीं रचाई जाती !!
शैतानों से युद्ध छिड़े जब 
लोरी नहीं सुनाई जाती !!
श्वेत पोश सर्पों को कुचलें
सरकारी मंसूबे मसलें ...!
जिसे नहीं है प्रेम देश से 
चुल्लू भर पानी में डूबे !!
स्वाभिमान की खातिर जागा 
हिन्दुस्तान की ख़ातिर जागा !
अब जन गण यह मांग रहा है ,
निर्णायक रणभेरी गूँजे .....!!

3 comments:

  1. सही सलाह देती सुन्दर-प्रेरक रचना!

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  2. अच्छी कविता - जो हमारे जज्बात को भी जगाये...

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  3. बहुत अच्छी रचना...... आभार

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