आज भी मेरी
नींदों पर
पहरा है
अश्कों का ....!
हथेलियाँ
बदलतीं हैं
करवटें ......!
भीगे-भीगे लिहाफ़,
सिलवटों में
बसी ख़ुशबू ...!
बिख़रते हुए ख़्वाब
सब तो हैं ..
अपनी-अपनी जगह...
बस इक़ तुम ही नहीं
आख़िर
तुम हो कहाँ
दिखते
क्यों नहीं .......!!
-Bhavana
नींदों पर
पहरा है
अश्कों का ....!
हथेलियाँ
बदलतीं हैं
करवटें ......!
भीगे-भीगे लिहाफ़,
सिलवटों में
बसी ख़ुशबू ...!
बिख़रते हुए ख़्वाब
सब तो हैं ..
अपनी-अपनी जगह...
बस इक़ तुम ही नहीं
आख़िर
तुम हो कहाँ
दिखते
क्यों नहीं .......!!
-Bhavana
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