पावस के सब दिन कल-कल कर बीत गए //
पल-पल उँगली के पोरों पर रीत गए /
पल-पल उँगली के पोरों पर रीत गए /
साँझ हुई फ़िर जला लिया ,दीपक उर में ,
ड्योढ़ी पर बैठी न लगे मन अब घर में /
साँसों की लौ रह-रह ,सहसा तेज़ हुई ,
आँखों की चौखट पावस की सेज हुई /
ताकूँ पंथ न जाने किस पथ मीत गए //
पावस के सब दिन कल-कल कर बीत गए //
यादों की बौछारों पर ,मन रीझ गया ,
काजल वाले जल से आँचल भीज गया /
प्राणों पर निष्ठुर बिजली डोरे डाले ,
विचलित करते मन बरबस बादल काले /
मैं हारी ये सारे विषधर जीत गए //
पावस के सब दिन कल-कल कर बीत गए //
पथराये मन पर छाई दुख की काई ,
धीरज के पाँवों में फिर फिसलन आई /
पलकों की चादर पर दृग आँसू टाँकें ,
उर की दीवारें मिलकर सिसकन बाँटें /
स्वर लहरी में तड़पन भर-भर गीत गए /
पावस के सब दिन कल-कल कर बीत गए //
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी का लिंक कल शनिवार (10-08-2013) को “आज कल बिस्तर पे हैं” (शनिवारीय चर्चा मंच-अंकः1333) पर भी होगा!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय शास्त्री जी विशेष आभार ..कि आपने मेरी रचना को 'चर्चा -मंच 'पर स्थान दिया .....!! अपना आशीष बनाए रखिएगा ..!!
ReplyDeleteभावपूर्ण सुंदर कविता के लिए बधाई !
ReplyDeleteभावपूर्ण कविता
ReplyDeletelatest post नेताजी सुनिए !!!
latest post: भ्रष्टाचार और अपराध पोषित भारत!!
bahut sunder .............
ReplyDeletevisit here also.....
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अत्यंत खुबसुरत रचना
ReplyDeleteसुन्दर कविता /गीत |आभार आदरणीय भावना जी
ReplyDeleteभावपूर्ण सुंदर कविता
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