गीत नवगीत कविता डायरी

02 February, 2015

गीत गा ले !!

 

बाँझ होने पाए ना यह लेखनी 

पीर लिख ले  

मीत गा ले !!

गर्भिणी हो आज रह ले 

विरहिणी सम दर्द सह ले 

तोड़ कर जंजीर चुप की 

आतंरिक एहसास कह ले ! 

जन्म ले जब कोई रचना 

हृदय हर्षित 

जीत गा ले !! 

करुण होकर,क्रुद्ध होकर ,

द्रवित हो मन बुद्ध होकर ! 

सृष्टि की पदचाप सुनले 

प्रेम-पथ का हाथ गह ले 

छंद-लय-गति जोड़ना 

ताड़ना कितनी मिले मत छोड़ना 

गीत गा ले !

  भावना तिवारी 

1 comment:

  1. करुण होकर,क्रुद्ध होकर ,
    द्रवित हो मन बुद्ध होकर !
    सृष्टि की पदचाप सुनले .....bahut hi khubsurati se prerna di hai aapne...

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