मोम हृदय, जलने को आतुर,
प्राण तडपती पीड़ा बाँटें
समय किसे अंतस में झांके !!
शहर भागता- दौड़ा जाये ,
क्या पकड़ा, क्या छोड़ा जाये !
पिंजरे की सांकल ना खुलती
द्वार न तम का तोडा जाये !
अंतहीन चिर मेरा चलना,
जीवन छोटा लम्बी राहें !!
आदि अंत का छोर न जानूँ ,
आदि अंत का छोर न जानूँ ,
तू मुझमें ,बस इतना मानूँ !
सात युगों से प्रण है मिटकर ,
एक बार प्रिय तुमको पालूँ !
सप्त-तलों की गहराई है ,
अधर सिन्धु-तट पर भी प्यासे !!
इतनी सुंदर अभिव्यक्ति की बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteजीवन छोटा लम्बी राहें/
आदि अंत का छोर न जानूं
तू मुझमें बस इतना जानूं
सात युगों से प्रण है मिटकर
एक बार प्रिय तुमको पालूँ/
अभिव्यक्ति की गहराइयों को स्पर्श करने/कराने के लिए साधुवाद
ReplyDeleteउमेश्वर दत्त "निशीथ"
बहुत देर से आया - अंतर्मन के कपाटों पर दस्तक देती प्रशंसनीय प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई
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