गीत
उनके दिल के दरवाजे अब
मेरी खातिर नहीं खुलेंगे/
मेरे बहुत चाहने पर भी,
हँसकरके वो नहीं मिलेंगे//
हंसी खेल की बात ज़रा सी,
रूप विकट लेगी झगड़े का/
हल न सवालों का निकलेगा,
मुश्किल में,सम्बन्ध पड़ेगा/
बहुत चाहने पर भी आँसू,
इन हांथों से नहीं पुछेंगे//
एक भूल का इतना सारा,
दंड मिलेगा कब सोचा था?
सागर-नदिया साथ चलेंगे,
लेकिन उनका मेल न होगा/
बहुत चाहने पर भी नगमे
इन होठों की नहीं सुनेंगे/
बहुत सुद्नर कविता भावना जी ..
ReplyDeleteप्रेम पंथ बहुत कठिन है और ये बात आपकी कविता में जागृत हुई है ...दिल से बधाई
आभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
हंसी खेल की बात ज़रा सी,
ReplyDeleteरूप विकट लेगी झगड़े का/
हल न सवालों का निकलेगा,
मुश्किल में,सम्बन्ध पड़ेगा/
...वाह जीवन सत्य का बहुत प्रभावी और भावपूर्ण चित्रण...भावों और शब्दों का अद्भुत संयोजन..बधाई..
बहुत सुन्दर भावना जी....
ReplyDeleteकविता में छिपे एहसास दिल को छू गए...
अनु
ज़िन्दगी कितना हो ऊबड़ खाबड़ क्यूं न हो...गुलाब इन्हीं रास्तों पर खिलते हैं...!
ReplyDeleteदर्द कितना ही कडवा क्यों न हो....सम्वेदना उसे यादगारी और मीठा बना देती है....!
सागर और नदिया हालात से मजबूर हो कर कितना ही रूठ जायें...पे चलते साथसाथ ही हैं......!
भावना जी!
आपकी कविता जिंदगी की विसंगतियों और अंतर की अंतरंगता और एकरूपता को बहुत ही खूबसूरती से प्रस्तुत करती हैं...! इतनी सुंदर रचना का सौभाग्य मां सरस्वती के वरदान से ही सम्भव है....
दर्द को भी अपना मार्गदर्शन बनाये रखना आपने अभी बहुत से आसमान छूने हैं...
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♥♥नव वर्ष मंगलमय हो !♥♥
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उनके दिल के दरवाजे अब
मेरी खातिर नहीं खुलेंगे/
मेरे बहुत चाहने पर भी,
हँस कर के वो नहीं मिलेंगे//
...लेकिन मेरा मन कहता है -
इतने सुंदर कोमल भावों को पहचान लेने के बाद उनके दिल के दरवाजे बंद रह ही नहीं सकते ...
आदरणीया भावना जी !
:)
इस भाव भरी रचना सहित आपकी अन्य बहुत सारी रचनाएं यहां पढ़ कर मन भावविभोर हो गया ...
बहुत उत्कृष्ट लिखती हैं आप !
हृदय से साधुवाद !
# नई रचना की ब्लॉग पर प्रतीक्षा रहेगी , बहुत समय हो गया ...
हार्दिक मंगलकामनाएं !
मकर संक्रांति की अग्रिम शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
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