मन पंछी जा रे उड़ जा रे
अब क्या बाकी है !
सब कुछ छूट गया उस पारे
अब क्या बाकी है !!
अपनी चारदिवारी प्रिय,
बाहर निकल सकी कब मैं !
और लांघकर कर ड्योढ़ी साथी
मुझ तक तुम कब आये !!
कितनी दूरी बीच हमारे
अब क्या बाकी है !
एक नदी के हम दो धारे
अब क्या बाक़ी है !!
साँसें रुकतीं प्राण न जाते ,
क्या जीवन है,क्षण-क्षण मरता !
झूठ नहीं कह पाता मन ये
लेकिन सच से भी डरता !
तपते सुख से दर्द सुखारे
अब क्या बाक़ी है !
आँखों से बहते जल-धारे
अब क्या बाक़ी है !!
है नितांत निर्जन वन सा मन
सन्नाटे को चीरे क्रंदन !
नहीं सुनाई देता जो वह
प्रेम कंटीला सुखमय तड़पन !
नीरवता से शोर भी हारे
अब क्या बाक़ी है !
स्वप्न हुए बेघर बंजारे
अब क्या बाक़ी है !!
-भावना
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