गीत नवगीत कविता डायरी

09 August, 2013

पावस के दिन

पावस के सब दिन कल-कल कर बीत गए //
पल-पल उँगली के पोरों पर रीत  गए /


साँझ हुई फ़िर जला लिया ,दीपक उर में ,
ड्योढ़ी पर बैठी  लगे मन अब घर में /
साँसों की लौ  रह-रह ,सहसा तेज़ हुई ,
आँखों की चौखट पावस की सेज हुई /
ताकूँ पंथ  जाने किस पथ मीत गए //
पावस के सब दिन कल-कल कर बीत गए //


यादों की बौछारों पर ,मन  रीझ गया ,
काजल वाले जल से आँचल भीज गया /
प्राणों पर निष्ठुर बिजली  डोरे डाले ,
विचलित करते मन बरबस बादल काले /
मैं हारी ये सारे विषधर जीत  गए //
पावस के सब दिन कल-कल कर बीत गए //



पथराये मन पर छाई दुख की काई ,
धीरज के पाँवों में फिर फिसलन  आई /
पलकों की चादर पर दृग आँसू टाँकें ,
उर की दीवारें मिलकर सिसकन बाँटें /
स्वर लहरी में तड़पन भर-भर गीत गए /
पावस के सब दिन कल-कल कर बीत गए //


8 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी का लिंक कल शनिवार (10-08-2013) को “आज कल बिस्तर पे हैं” (शनिवारीय चर्चा मंच-अंकः1333) पर भी होगा!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आदरणीय शास्त्री जी विशेष आभार ..कि आपने मेरी रचना को 'चर्चा -मंच 'पर स्थान दिया .....!! अपना आशीष बनाए रखिएगा ..!!

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  3. भावपूर्ण सुंदर कविता के लिए बधाई !

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  4. bahut sunder .............

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  5. अत्यंत खुबसुरत रचना

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  6. सुन्दर कविता /गीत |आभार आदरणीय भावना जी

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  7. भावपूर्ण सुंदर कविता

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